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उठ रहा है दम-ब-दम डर का धुआँ - वसाफ़ बासित कविता - Darsaal

उठ रहा है दम-ब-दम डर का धुआँ

उठ रहा है दम-ब-दम डर का धुआँ

कम नहीं हो पा रहा घर का धुआँ

कश्तियों की आग दफ़नाने के बा'द

देख ले साहिल समुंदर का धुआँ

दोनों जानिब एक जैसी आग है

दोनों जानिब है बराबर का धुआँ

सामने तो सीन है बेहतर मगर

क्या पता पीछे हो मंज़र का धुआँ

खिड़कियाँ सारी की सारी खोल कर

देखता रहता हूँ बाहर का धुआँ

जंग के आसार हैं बाक़ी अभी

आ रहा है पास लश्कर का धुआँ

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In Hindi By Famous Poet Vasaf Basit. is written by Vasaf Basit. Complete Poem in Hindi by Vasaf Basit. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.