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सहेली - वर्षा गोरछिया कविता - Darsaal

सहेली

किस धुन में रहती हो तुम

उलझे हुए बालों की गिर्हें

तुम से नहीं सुलझती क्या

लाओ इन्हें मैं सुलझा दूँ

ऊन के उलझे गुच्छों से

ये बाल तुम्हारे

सुलझे तो रेशम हो जाएँ

और बालों को सुलझाने के बहाने

जीवन की उलझन सुलझाऊँ

घने बनों में शंख बजाऊँ

और तितली बन कर उड़ जाऊँ

शाख़ों को मैं रक़्स दिखाऊँ

एक काग़ज़ की नाव बनाऊँ

तुझ को दूर बहा ले जाऊँ

और तेरे दुख की वर्षा में

अंतर्मन तक भीगती जाऊँ

आ अजनबी सी लड़की

मैं तेरी बचपन की सी सहेली हो जाऊँ

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In Hindi By Famous Poet Varsha Gorchhia. is written by Varsha Gorchhia. Complete Poem in Hindi by Varsha Gorchhia. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.