ख़याल कुछ यूँ बिलखते हैं सीने में
जैसे गुनाह पिघलते हों
जैसे लफ़्ज़ चटकते हों
जैसे रूहें बिछड़ती हों
जैसे लाशें फंफनाती हों
जैसे लम्स खुरदुरे हों
जैसे लब दरदरे हों
जैसे कोई बदन कतरता हो
जैसे कोई समन कचरता हो
ख़याल तेरे कुछ यूँ बिलखते हैं सीने में
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