आओ न किसी दिन
यमुना किनारे
कभी किसी बड़
या पीपल पर चढ़ें
कोई पीला सा आँचल
क्यूँ नहीं देते सौग़ात में
मुझे भी
दूर-दूर चलें चारागाहों में
खेलें मिल कर दोनों
मीठा सा राग
क्यूँ नहीं सुनाते मुझे
कभी तो सताओ
कभी तो मटकी फोड़ो
चुरा लो मक्खन कभी तो
कान्हा कहाँ हो तुम
आओ न
रास-लीला करो
कभी मेरे साथ भी