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दूसरी रात - वर्षा गोरछिया कविता - Darsaal

दूसरी रात

ये भी रात गुज़र रही हे

कमरे की बिखरी चीज़ें समेटते हुए

तुम्हारे जाने के बाद

तुम्हारी चहल-क़दमियाँ घूमती रहती हैं दिल के आँगन में

गूँजती रहती हैं तुम्हारी सरगोशियाँ मेरे कानों में

बिस्तर की सिलवटें मुँह चिढ़ाने लगती हैं

इस बार सिगरेट के जले हुए टुकड़ों पर महसूस करती हूँ

तुम्हारे होंटों का लम्स

इधर-उधर बिखरे हुए तुम्हारी बातों के ढेर

चाय की झूटी प्यालियाँ

एक एक को उठाती हूँ और रखती जाती हूँ

यादों की अलमारी में

जिस में पहले ही से मौजूद हैं

तुम्हारी मुस्कुराहटों की गठरियाँ

बॉलकोनी से झाँकता हुआ चाँद

महकती हुई रात की रानी

कितना कुछ समेटना बाक़ी हे अभी

मेरे माथे पर तुम्हारे होंटों का लम्स

तुम्हारे नाम का विर्द करती हुई धड़कने

थक कर चूर हो गई हूँ ख़ुद को समेटते हुए

और आसमान पर चमकता हुआ आख़िरी सितारा भी

इस बार डूब जाना चाहता है मेरे साथ

तुम्हारी यादो के बे-कराँ समुंदर में

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In Hindi By Famous Poet Varsha Gorchhia. is written by Varsha Gorchhia. Complete Poem in Hindi by Varsha Gorchhia. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.