आवाज़
तुम्हारी ज़बाँ से गिरा
एक शोख़ लफ़्ज़
बारिश
यूँ लगा कि मुझे छू गया हो जैसे
खिड़की के बाहर बूंदों की टिपटिपाहट
कानों से होती हुई धड़कन तक आ पहूँची
एक संगीत एक राग था
दोनों में
पत्तों पर पानी की बूँदें यूँ लगी मानो
तुम ने चमकती सी कुछ ख़्वाहिशें रखी हों
गीली गीली यादों की कुछ फूहारें
सफ़ेद झीने पर्दों से आती ठंडी हवा
दूर तक फैले हुए देवदार के दरख़्त
और उन की नौ-उम्र टहनियाँ की सरगोशियाँ
पैरों की उँगलियों में गुदगुदी कर गई
सुनो ना
मैं कसमसा जाती हूँ
यूँ न मेरा नाम लिया करो
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