लाख नादाँ हैं मगर इतनी सज़ा भी न मिले
लाख नादाँ हैं मगर इतनी सज़ा भी न मिले
चारासाज़ों को मिरी शाम-ए-बला भी न मिले
हसरत-आगीं तो है नाकामी-ए-मंज़िल लेकिन
लुत्फ़ तो जब है कि ख़ुद अपना पता भी न मिले
कुछ निगाहों से ग़म-ए-दिल की ख़बर मिलती है
वर्ना हम वो हैं कि बातों से हवा भी न मिले
ख़्वाहिश-ए-दाद-रसी क्या हो सितम-गर से जहाँ
आँख में शाइबा-ए-उज़्र-ए-जफ़ा भी न मिले
इस क़दर क़हत-ए-बसीरत भी नहीं ऐ वाइ'ज़
हम बुतों के लिए निकलें तो ख़ुदा भी न मिले
इश्क़ वो अर्सा-ए-पुर-ख़ार है हमदम कि जहाँ
ज़िंदगी रास न आए तो क़ज़ा भी न मिले
क्या क़यामत है तबीअ'त की रवानी 'वारिस'
कोई ढूँढे तो निशान-ए-कफ़-ए-पा भी न मिले
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