आशिक़ हुए तो इश्क़ में होश्यार क्यूँ न थे
आशिक़ हुए तो इश्क़ में होश्यार क्यूँ न थे
हम इन के मदह-ख़्वाँ सर-ए-बाज़ार क्यूँ न थे
हाँ जब सितम को ऐन करम कह रहे थे लोग
हम भी शरीक-ए-गर्मी-ए-गुफ़्तार क्यूँ न थे
जब चल रहा था वक़्त पे जादू निगाह का
इक हम असीर-ए-चशम-ए-फुसूँ-कार क्यूँ न थे
अब क्या शहीद-ए-नाज़ बने फिर रहे हैं लोग
मरने का शौक़ था तो सरदार क्यूँ न थे
'वारिस' ये शाइरी सम-ए-क़ातिल से कम नहीं
आप इस बला-ए-जाँ से ख़बर-दार क्यूँ न थे
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