आ दिल में फ़ज़ा-ए-तूर बन कर छा जा
रग रग में सिफ़ात-ए-नूर बन कर छा जा
ऐ साक़ी-ए-बज़्म-ए-कुन मैं सदक़े तेरे
आँखों में मिरी सुरूर बन कर छा जा
Habib Jalib
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Javed Akhtar
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Gulzar
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Faiz Ahmad Faiz
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शिकस्त-ए-साग़र-ए-दिल की सदाएँ सुन रहा हूँ मैं
घटाएँ ऊदी ऊदी मै-कदा बर-दोश-ए-फ़स्ल-ए-गुल
देखो देखो हयात-ए-फ़ानी देखो
ज़मीं से आसमाँ तक आसमाँ से ला-मकाँ तक है
जब गुलशन-ए-दहर में था मस्कन मेरा
जो हुस्न में आ के नाज़ बन जाता है