शिकस्त-ए-साग़र-ए-दिल की सदाएँ सुन रहा हूँ मैं
ज़रा पूछो तो साक़ी से कि पैमानों पे क्या गुज़री
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देखो देखो हयात-ए-फ़ानी देखो
आ दिल में फ़ज़ा-ए-तूर बन कर छा जा
जो हुस्न में आ के नाज़ बन जाता है
घटाएँ ऊदी ऊदी मै-कदा बर-दोश-ए-फ़स्ल-ए-गुल
ज़मीं से आसमाँ तक आसमाँ से ला-मकाँ तक है
जब गुलशन-ए-दहर में था मस्कन मेरा