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ज़मीं से आसमाँ तक आसमाँ से ला-मकाँ तक है - वहशी कानपुरी कविता - Darsaal

ज़मीं से आसमाँ तक आसमाँ से ला-मकाँ तक है

ज़मीं से आसमाँ तक आसमाँ से ला-मकाँ तक है

ज़रा पर्वाज़-ए-मुश्त-ए-ख़ाक तो देखो कहाँ तक है

तलाश-ओ-जुस्तुजू की हद फ़क़त नाम-ओ-निशाँ तक है

सुराग़-ए-कारवाँ भी बस ग़ुबार-ए-कारवाँ तक है

जबीन-ए-शौक़ को कुछ और भी इज़्न-ए-सआदत दे

ये ज़ौक़-ए-बंदगी महदूद संग-ए-आस्ताँ तक है

सरापा आरज़ू बन कर कमाल-ए-मुद्दआ हो जा

वो नंग-ए-इश्क़ है जो आरज़ू आह-ओ-फ़ुग़ाँ तक है

बढ़ाए जा क़दम राह-ए-तलब में शौक़ से 'वहशी'

कि हद-ए-सई-ए-ला-हासिल फ़क़त कौन-ओ-मकाँ तक है

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In Hindi By Famous Poet Vahshi Kanpuri. is written by Vahshi Kanpuri. Complete Poem in Hindi by Vahshi Kanpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.