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तमाम रात वो जागा किसी के वा'दे पर - वफ़ा मलिकपुरी कविता - Darsaal

तमाम रात वो जागा किसी के वा'दे पर

तमाम रात वो जागा किसी के वा'दे पर

वफ़ा को आ ही गई नींद रात ढलने पर

जो सब का दोस्त था हर अंजुमन की रौनक़ था

कल उस की लाश मिली उस के घर के मलबे पर

वो ज़ौक़-ए-फ़न हो कि शाख़-ए-चमन कि ख़ाक-ए-वतन

हर इक का हक़ है मिरे ख़ूँ के क़तरे क़तरे पर

हक़ीक़तें नज़र आएँ तो किस तरह उन को

तअ'स्सुबात की ऐनक है जिन के चेहरे पर

चमन में यूँ तो थे कुछ और आशियाँ लेकिन

गिरी जो बर्क़ तो मेरे ही आशियाने पर

करम मुझी पे था सब बाग़बान-ओ-गुलचीं का

किसी ने क़ैद किया और किसी ने नोचे पर

ये दश्त-ए-हुज़्न है कर्ब-ओ-बला का सहरा है

चलेगा कौन यहाँ अब 'वफ़ा' के रस्ते पर

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In Hindi By Famous Poet Vafa Malikpuri. is written by Vafa Malikpuri. Complete Poem in Hindi by Vafa Malikpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.