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नई सहर है ये लोगो नया सवेरा है - वफ़ा मलिकपुरी कविता - Darsaal

नई सहर है ये लोगो नया सवेरा है

नई सहर है ये लोगो नया सवेरा है

तुलूअ' हो चुका सूरज मगर अँधेरा है

ख़ुदा ही जाने ये दिल कब ख़ुदा का घर होगा

अभी तो इस में बुतान-ए-हवस का डेरा है

अभी न दे मुझे आवाज़ ऐ ग़म-ए-जानाँ

अभी तो शहर-ए-वफ़ा में बड़ा अँधेरा है

न साएबान न आँगन न छत न रौशन-दान

और इस पे सब से लड़ाई कि घर ये मेरा है

ये दार-ओ-गीर की दुनिया में कहना मुश्किल है

कि कौन इस में लुटा कौन याँ लुटेरा है

ये सारे झगड़े हैं बस एक दो पहर के लिए

कि नूर-ए-मेहर न मेरा है और न तेरा है

वफ़ा निसार हो उस की वफ़ा-शनासी पर

हज़ार गर्दिशों के बा'द भी जो मेरा है

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In Hindi By Famous Poet Vafa Malikpuri. is written by Vafa Malikpuri. Complete Poem in Hindi by Vafa Malikpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.