हम कभी ख़ुद से कोई बात नहीं कर पाते
हम कभी ख़ुद से कोई बात नहीं कर पाते
ज़िंदगी तुझ से मुलाक़ात नहीं कर पाते
बैठ जाता है जहाँ दर्द थका-हारा सा
ख़्वाब भी उस से सवालात नहीं कर पाते
उन से फिर और किसी शय की तवक़्क़ो' कैसी
चंद लम्हे भी जो ख़ैरात नहीं कर पाते
ज़िंदगी बे-सर-ओ-सामाँ ही गुज़र जाती है
दिन जो कर लेते हैं वो रात नहीं कर पाते
उम्र-भर उन के मुक़द्दर में हैं सूखे दरिया
अपनी कोशिश से जो बरसात नहीं कर पाते
सब्र की बात बड़ी शुक्र के दरिया गहरे
लेकिन उन से गुज़र औक़ात नहीं कर पाते
कभी भूले से मुक़द्दर जो हमें देता है
सुरख़-रू हम वही लम्हात नहीं कर पाते
इक न इक ख़ौफ़ हमें रोक लिया करता है
हम बयाँ डूबते जज़्बात नहीं कर पाते
पास आते हैं जहाँ अपने इरादे 'ऊषा'
हम कभी उन की मुदारात नहीं कर पाते
(633) Peoples Rate This