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मानता नहीं मेरी हुज्जतें भी करता है - उरूज ज़ेहरा ज़ैदी कविता - Darsaal

मानता नहीं मेरी हुज्जतें भी करता है

मानता नहीं मेरी हुज्जतें भी करता है

बात बात में अपनी जिद्दतें भी करता है

आग भी लगाता है आप अपने दामन में

फिर उसे बुझाने को बारिशें भी करता है

इश्क़ ख़ुद से है उस को और ख़ुद ही वो पागल

अपना आप खोने की साज़िशें भी करता है

दिल में जीते रहने की आस बढ़ती रहती है

साथ साथ मरने की ख़्वाहिशें भी करता है

जाँ-कनी के आलम में याद कर के प्यारों को

मौत के फ़रिश्ते से मन्नतें भी करता है

मुझ से थोड़ा डरता है पास यूँ नहीं आता

बाक़ियों से तो अक्सर ख़ल्वतें भी करता है

मुझ से कहता रहता है ख़ुश रहा करो नाँ तुम

और दिल दुखाने की हरकतें भी करता है

बात भी नहीं करता मुझ से और फिर अपनी

एक एक आदत में मंतिक़ें भी करता है

कुछ अलग सा है सब से कुछ अजब वो है 'ज़ेहरा'

अपनी हर मोहब्बत में शिद्दतें भी करता है

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In Hindi By Famous Poet Urooj Zehra Zaidi. is written by Urooj Zehra Zaidi. Complete Poem in Hindi by Urooj Zehra Zaidi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.