काश उस बुत को भी हम वक़्फ़-ए-तमन्ना देखें
काश उस बुत को भी हम वक़्फ़-ए-तमन्ना देखें
बर्फ़ की सिल से निकलता हुआ शो'ला देखें
जिन को मंज़िल-तलबी में हो तलाश-ए-रहबर
रहनुमाई को मिरे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा देखें
पाँव की रौंदी हुई ख़ाक है अपने सर पर
हम ने चाहा था कि आलम तह-ओ-बाला देखें
नर्म और गर्म-निगाही पे नहीं अपनी नज़र
तेरे होते तिरा अंदाज़-ए-नज़र क्या देखें
अपना ग़म भी ग़म-ए-दुनिया के बराबर है 'उरूज'
अपना ग़म भूल सकें तो ग़म-ए-दुनिया देखें
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