ज़िंदगी राज़ी नहीं थी ग़म उठाने के लिए
हम चले आए यहाँ तक मुस्कुराने के लिए
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राह जो चलनी है उस में ख़ूबियाँ कोई नहीं
जाने किस किस ने हमें ताकीद की
किस तरह भूले तिरे अल्फ़ाज़-ए-बेजा क्या करूँ
ख़ुद सवाल-ओ-जवाब करते रहो
ख़ुद के एहसास-ए-मोहब्बत ने मुझे ज़िंदा रखा
ढूँढिए इस शहर में अब किस को हासिल कौन है