ख़ुद सवाल-ओ-जवाब करते रहो
अपने दिल से हिसाब करते रहो
क्यूँ ये अरमान यूँ ही मर जाए
तलब-ए-आफ़ताब करते रहो
चाँदनी हो या चाँद हो ख़ुद ही
तुम तो निय्यत ख़राब करते रहो
चाहे तरजीह कोई दे या नहीं
ख़ुद को यूँ ही सराब करते रहो
जब तलक जिस्म टूट कर न गिरे
ज़िंदगी बे-नक़ाब करते रहो