जाने किस किस ने हमें ताकीद की
क्यूँ नहीं देखी चमक ख़ुर्शीद की
जबकि एहसास-ए-रक़ाबत हो गया
किस से तब उम्मीद हो ताईद की
सब चमक से ही अगर मंसूब था
सब से बेहतर थी चमक नाहीद की
ख़ूबसूरत ज़िंदगी नैरंग है
हम ने कब उस से कोई उम्मीद की
जब तग़ाफ़ुल का इरादा कर लिया
कौन करता फ़िक्र ख़ैर ओ दीद की