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बस्ता-लब था वो मगर सारे बदन से बोलता था - उर्फ़ी आफ़ाक़ी कविता - Darsaal

बस्ता-लब था वो मगर सारे बदन से बोलता था

बस्ता-लब था वो मगर सारे बदन से बोलता था

भेद गहरे पानियों के चुपके चुपके खोलता था

था अजब कुछ सेहर-सामाँ ये भी अचरज हम ने देखा

छानता था ख़ाक-ए-सहरा और मोती रोलता था

रच रहा था धीरे धीरे मुझ में नश्शा तीरगी का

कौन था जो मेरे पैमाने में रातें घोलता था

डर के मारे लोग थे दुबके हुए अपने घरों में

एक बादल सा धुएँ का बस्ती बस्ती डोलता था

काँप काँप उठता था मेरा मैं ही ख़ुद मेरे मुक़ाबिल

मैं नहीं तो फिर वो किस पर कौन ख़ंजर तौलता था

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In Hindi By Famous Poet Urfi Aafaqi. is written by Urfi Aafaqi. Complete Poem in Hindi by Urfi Aafaqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.