वो हादसे भी दहर में हम पर गुज़र गए
जीने की आरज़ू में कई बार मर गए
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इस कार-ए-नुमायाँ के शाहिद हैं चमन वाले
सारी दुनिया में दाना है अपने घर में कुछ भी नहीं
किसी के फ़ैज़-ए-क़ुर्ब से हयात अब सँवर गई
रात कई आवारा सपने आँखों में लहराए थे
हुस्न से आँख लड़ी हो जैसे
कहते हैं अज़ल जिस को उस से भी कहीं पहले
तअ'स्सुब की फ़ज़ा में ता'ना-ए-किरदार क्या देता
आप से चूक हो गई शायद
इश्क़ फिर इश्क़ है आशुफ़्ता-सरी माँगे है
रहने दे तकलीफ़-ए-तवज्जोह दिल को है आराम बहुत
हुस्न ही तो नहीं बेताब-ए-नुमाइश 'उनवाँ'
मैं किस तरह तुझे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई दूँ