इस कार-ए-नुमायाँ के शाहिद हैं चमन वाले
गुलशन में बहारों को लाए थे हमीं पहले
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कहते हैं अज़ल जिस को उस से भी कहीं पहले
परेशाँ हो के दिल तर्क-ए-तअल्लुक़ पर है आमादा
कुछ तो बताओ ऐ फ़रज़ानो दीवानों पर क्या गुज़री
बच्चे भी अब देख के उस को हँसते हैं
इश्क़ फिर इश्क़ है आशुफ़्ता-सरी माँगे है
वो मुस्कुरा के मोहब्बत से जब भी मिलते हैं
रात कई आवारा सपने आँखों में लहराए थे
तअ'स्सुब की फ़ज़ा में ता'ना-ए-किरदार क्या देता
ज़िंदाबाद ऐ दश्त के मंज़र ज़िंदाबाद
वो हादसे भी दहर में हम पर गुज़र गए
हुस्न से आँख लड़ी हो जैसे