हुस्न ही तो नहीं बेताब-ए-नुमाइश 'उनवाँ'
इश्क़ भी आज नई जल्वागरी माँगे है
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मिरे शानों पे उन की ज़ुल्फ़ लहराई तो क्या होगा
हुस्न से आँख लड़ी हो जैसे
रात कई आवारा सपने आँखों में लहराए थे
जब ज़ुल्फ़ शरीर हो गई है
बच्चे भी अब देख के उस को हँसते हैं
इश्क़ फिर इश्क़ है आशुफ़्ता-सरी माँगे है
आज अचानक फिर ये कैसी ख़ुशबू फैली यादों की
आप से चूक हो गई शायद
कहते हैं अज़ल जिस को उस से भी कहीं पहले
वो हादसे भी दहर में हम पर गुज़र गए
कुछ तो बताओ ऐ फ़रज़ानो दीवानों पर क्या गुज़री