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बच्चे भी अब देख के उस को हँसते हैं - उनवान चिश्ती कविता - Darsaal

बच्चे भी अब देख के उस को हँसते हैं

बच्चे भी अब देख के उस को हँसते हैं

उस के मुँह पर रंग बिरंगे साए हैं

जलती आँखें ले कर भी इतराता हूँ

सब के सपने मेरे अपने सपने हैं

मेरा बदन है कितनी रूहों का मस्कन

मेरी जबीं पर कितने कतबे लिक्खे हैं

जब से किसी ने बीच में रख दी है तलवार

हम-साए भी हम-साए से डरते हैं

शहरी भँवरे से कहना ऐ बाद-ए-सबा

नीम के पत्ते गाँव में अब भी कड़वे हैं

एक ज़रा सी ठेस लगी और टूट गए

दिल के रिश्ते कितने नाज़ुक होते हैं

किस को दिखाऊँ अपनी नज़र से तेरा रूप

तेरे भी तो एक नहीं सौ चेहरे हैं

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In Hindi By Famous Poet Unwan Chishti. is written by Unwan Chishti. Complete Poem in Hindi by Unwan Chishti. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.