कभी नर्मी कभी सख़्ती कभी उलझन कभी डर
वक़्त ऐ दोस्त बहर-हाल गुज़र जाता है
लम्हा लम्हा नज़र आता था कभी इक इक साल
एक लम्हे में कभी साल गुज़र जाता था
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Habib Jalib
Anwar Masood
Rahat Indori
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
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चार गंजे एक दावत में जमा जब हो गए
तुम रंग हो तुम नूर हो तुम शीशा हो तुम जाम
क्या बूद-ओ-बाश पूछो हो पूरब के साकिनो
यूज़ करते हैं मुसलसल मेक-अप का डब्बा रोज़ क्यूँ