वो ख़्वाब ही सही पेश-ए-नज़र तो अब भी है
बिछड़ने वाला शरीक-ए-सफ़र तो अब भी है
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Habib Jalib
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(646) Peoples Rate This
हिजाब उट्ठे हैं लेकिन वो रू-ब-रू तो नहीं
ऐ दिल-ए-ख़ुद-ना-शनास ऐसा भी क्या
हम तिरा अहद-ए-मोहब्बत ठहरे
तुम हो जो कुछ कहाँ छुपाओगे
ये ख़ुद-फ़रेबी-ए-एहसास-ए-आरज़ू तो नहीं
जब से 'उम्मीद' गया है कोई!!
घर तो ऐसा कहाँ का था लेकिन
जाने कब तूफ़ान बने और रस्ता रस्ता बिछ जाए
चमन में रखते हैं काँटे भी इक मक़ाम ऐ दोस्त
हाए इक शख़्स जिसे हम ने भुलाया भी नहीं