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नज़र न आए तो क्या वो मिरे क़यास में है - उम्मीद फ़ाज़ली कविता - Darsaal

नज़र न आए तो क्या वो मिरे क़यास में है

नज़र न आए तो क्या वो मिरे क़यास में है

वो एक झूट जो सच्चाई के लिबास में है

अमल से मेरे ख़यालों का मुँह चिढ़ाता है

वो एक शख़्स कि पिन्हाँ मिरे लिबास में है

अभी जराहत-ए-सर ही इलाज ठहरा है

कि नब्ज़-ए-संग किसी दस्त-ए-बे-क़यास में है

शजर से साया जुदा है तो धूप सूरज से

सफ़र हयात का किस दश्त-ए-बे-क़यास में है

ज़रा जो तल्ख़ हो लहजा तो कोई बात बने

ग़रीब-ए-शहर मगर क़ैद-ए-इल्तिमास में है

तुझे ख़बर भी है ख़ुद तेरी कम-निगाही का

इक ए'तिराफ़ तिरे हर्फ़-ए-ना-सिपास में है

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In Hindi By Famous Poet Ummeed Fazli. is written by Ummeed Fazli. Complete Poem in Hindi by Ummeed Fazli. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.