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कब तक इस प्यास के सहरा में झुलसते जाएँ - उम्मीद फ़ाज़ली कविता - Darsaal

कब तक इस प्यास के सहरा में झुलसते जाएँ

कब तक इस प्यास के सहरा में झुलसते जाएँ

अब ये बादल जो उठे हैं तो बरसते जाएँ

कौन बतलाए तुम्हें कैसे वो मौसम हैं कि जो

मुझ से ही दूर रहें मुझ में ही बस्ते जाएँ

हम से आज़ाद-मिज़ाजों पे ये उफ़्ताद है क्या

चाहते जाएँ उसे ख़ुद को तरसते जाएँ

हाए क्या लोग ये आबाद हुए हैं मुझ में

प्यार के लफ़्ज़ लिखें लहजे से डसते जाएँ

आइना देखूँ तो इक चेहरे के बे-रंग नुक़ूश

एक नादीदा सी ज़ंजीर में कसते जाएँ

जुज़ मोहब्बत किसे आया है मयस्सर 'उम्मीद'

ऐसा लम्हा कि जिधर सदियों के रस्ते जाएँ

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In Hindi By Famous Poet Ummeed Fazli. is written by Ummeed Fazli. Complete Poem in Hindi by Ummeed Fazli. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.