वो चुप लगी है कि हँसता है और न रोता है
ये हो गया है ख़ुदा जाने दिल को रात से क्या
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(614) Peoples Rate This
चले जो धूप में मंज़िल थी उन की
कर अपनी बात कि प्यारे किसी की बात से क्या
मुझे मेहमाँ ही जानो रात भर का
छुप कर न रह सकेगा वो हम से कि उस को हम
बुरा सही मैं प नीयत बुरी नहीं मेरी
जिस आईने में भी झाँका नज़र उसी से मिली
लड़ जाते हैं सरों पे मचलती क़ज़ा से भी
बाहर बाहर सन्नाटा है अंदर अंदर शोर बहुत
हर इक का दर्द उसी आशुफ़्ता-सर में तन्हा था
उठा ये शोर वहीं से सदाओं का क्यूँ-कर
हो के उस कूचे से आई तो सितम ढा गई क्या