उठा ये शोर वहीं से सदाओं का क्यूँ-कर
वो आदमी तो सुना अपने घर में तन्हा था
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Wasi Shah
Allama Iqbal
Rahat Indori
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(596) Peoples Rate This
वो चुप लगी है कि हँसता है और न रोता है
हैं सारे जुर्म जब अपने हिसाब में लिखना
छुप कर न रह सकेगा वो हम से कि उस को हम
तारी है हर तरफ़ जो ये आलम सुकूत का
हर इक का दर्द उसी आशुफ़्ता-सर में तन्हा था
बाहर बाहर सन्नाटा है अंदर अंदर शोर बहुत
वही दिया कि थीं आजिज़ हवाएँ जिन से 'उमर'
चले जो धूप में मंज़िल थी उन की
कर अपनी बात कि प्यारे किसी की बात से क्या
जिस आईने में भी झाँका नज़र उसी से मिली
अक्सर हुआ है ये कि ख़ुद अपनी तलाश में