तारी है हर तरफ़ जो ये आलम सुकूत का
तूफ़ाँ का पेश-ख़ेमा समझ ख़ामुशी नहीं
Habib Jalib
Gulzar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(745) Peoples Rate This
हर इक का दर्द उसी आशुफ़्ता-सर में तन्हा था
कर अपनी बात कि प्यारे किसी की बात से क्या
अक्सर हुआ है ये कि ख़ुद अपनी तलाश में
बुरा सही मैं प नीयत बुरी नहीं मेरी
छुप कर न रह सकेगा वो हम से कि उस को हम
चले जो धूप में मंज़िल थी उन की
मुझे मेहमाँ ही जानो रात भर का
मुसाफ़िरों से मोहब्बत की बात कर लेकिन
उठा ये शोर वहीं से सदाओं का क्यूँ-कर
वही दिया कि थीं आजिज़ हवाएँ जिन से 'उमर'
लड़ जाते हैं सरों पे मचलती क़ज़ा से भी