छुप कर न रह सकेगा वो हम से कि उस को हम
पहचान लेंगे उस की किसी इक अदा से भी
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Gulzar
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(640) Peoples Rate This
हर इक का दर्द उसी आशुफ़्ता-सर में तन्हा था
मुझे मेहमाँ ही जानो रात भर का
जिस आईने में भी झाँका नज़र उसी से मिली
उठा ये शोर वहीं से सदाओं का क्यूँ-कर
उस इक दिए से हुए किस क़दर दिए रौशन
तारी है हर तरफ़ जो ये आलम सुकूत का
कर अपनी बात कि प्यारे किसी की बात से क्या
बाहर बाहर सन्नाटा है अंदर अंदर शोर बहुत
वो चुप लगी है कि हँसता है और न रोता है
हो के उस कूचे से आई तो सितम ढा गई क्या
चले जो धूप में मंज़िल थी उन की