बुरा सही मैं प नीयत बुरी नहीं मेरी
मिरे गुनाह भी कार-ए-सवाब में लिखना
Gulzar
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Javed Akhtar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(674) Peoples Rate This
बाहर बाहर सन्नाटा है अंदर अंदर शोर बहुत
वही दिया कि थीं आजिज़ हवाएँ जिन से 'उमर'
वो चुप लगी है कि हँसता है और न रोता है
जो तीर आया गले मिल के दिल से लौट गया
चले जो धूप में मंज़िल थी उन की
उठा ये शोर वहीं से सदाओं का क्यूँ-कर
उस इक दिए से हुए किस क़दर दिए रौशन
मुझे मेहमाँ ही जानो रात भर का
तारी है हर तरफ़ जो ये आलम सुकूत का
मुसाफ़िरों से मोहब्बत की बात कर लेकिन