यहाँ हम ने किसी से दिल लगाया ही नहीं 'मंज़र'
कि इस दुनिया से आख़िर एक दिन बे-ज़ार होना था
Gulzar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(580) Peoples Rate This
कभी इक़रार होना था कभी इंकार होना था
सुना ये था बहुत आसूदा हैं साहिल के बाशिंदे
ख़ुद को हर रोज़ इम्तिहान में रख
इस महफ़िल में मैं भी क्या बेबाक हुआ
साथी मिरे कहाँ से कहाँ तक पहुँच गए
हर बार ही मैं जान से जाने में रह गया
तज़्किरा हो तिरा ज़माने में
बढ़ते चले गए जो वो मंज़िल को पा गए
ये तो सच है कि वो सितमगर है
बना के वहम ओ गुमाँ की दुनिया हक़ीक़तों के सराब देखूँ
जब इंसान को अपना कुछ इदराक हुआ