हर बार ही मैं जान से जाने में रह गया
मैं रस्म-ए-ज़िंदगी जो निभाने में रह गया
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(483) Peoples Rate This
इल्म ओ फ़न के राज़-ए-सर-बस्ता को वा करता हुआ
जब इंसान को अपना कुछ इदराक हुआ
ये तो सच है कि वो सितमगर है
बना के वहम ओ गुमाँ की दुनिया हक़ीक़तों के सराब देखूँ
ख़ुद को हर रोज़ इम्तिहान में रख
बढ़ते चले गए जो वो मंज़िल को पा गए
तज़्किरा हो तिरा ज़माने में
ये मेरे साथी हैं प्यारे साथी मगर इन्हें भी नहीं गवारा
इस महफ़िल में मैं भी क्या बेबाक हुआ
साथी मिरे कहाँ से कहाँ तक पहुँच गए