Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_dcc0a29f27143d325330f5328fc8794d, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
कभी इक़रार होना था कभी इंकार होना था - उमैर मंज़र कविता - Darsaal

कभी इक़रार होना था कभी इंकार होना था

कभी इक़रार होना था कभी इंकार होना था

उसे किस किस तरह से दर-पए आज़ार होना था

सुना ये था बहुत आसूदा हैं साहिल के बाशिंदे

मगर टूटी हुई कश्ती में दरिया पार होना था

सदा-ए-अल-अमाँ दीवार-ए-गिर्या से पलट आई

मुक़द्दर कूफ़ा ओ काबुल का जो मिस्मार होना था

मुक़द्दर के नविश्ते में जो लिक्खा है वही होगा

ये मत सोचो कि किस पर किस तरह से वार होना था

यहाँ हम ने किसी से दिल लगाया ही नहीं 'मंज़र'

कि इस दुनिया से आख़िर एक दिन बे-ज़ार होना था

(539) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Umair Manzar. is written by Umair Manzar. Complete Poem in Hindi by Umair Manzar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.