हम से पहले भी इस जग में पीत हुई है मन टूटे हैं
हम से पहले भी इस जग में पीत हुई है मन टूटे हैं
जाने कितने फ़रहादों के पर्बत पर्बत सर फूटे हैं
पीत-नगर की अमर-कहानी तेरा जौबन मेरे नैन
बाक़ी इस संसार के बंधन मेरी सजनी सब झूटे हैं
रूप मिलन की आशा ले कर हम जीवन जीवन घूमे हैं
सदियों आश निवाश के लम्हे शाम सवेरों से फूटे हैं
बिर्हा और संजोग कथा हैं माया-जाल की चंचलता हैं
वर्ना प्रेमी मन बंधन में इक दूजे से कब छोटे हैं
रंगीं सपने देखने वालो देखो तुम निर्धन तो नहीं हो
मुझ निर्धन ने जितने रंगीं सपने देखे सब झूटे हैं
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