ये बिफरती मौज अंदेशे समुंदर और मैं
डूबती साँसें हथेली पर मिरा सर और मैं
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(742) Peoples Rate This
धूप होते हुए बादल नहीं माँगा करते
हर तरफ़ फैला हुआ बे-सम्त बे-मंज़िल सफ़र
सफ़र अंजाम तक पहुँचे तो कैसे
ग़ज़ल का सिलसिला था याद होगा
एक साए की तलब में ज़िंदगी पहुँची यहाँ
वो मौसमों पर उछालता है सवाल कितने
ज़ुल्म को तेरे ये ताक़त नहीं मिलने वाली
कोई वादा न देंगे दान में क्या
सभी ज़ख़्मों के टाँके खुल गए हैं
हम बुज़ुर्गों की रिवायत से जुड़े हैं भाई
उस के वा'दे के एवज़ दे डाली अपनी ज़िंदगी