आवाज़ हूँ उभर के जो सहरा में खो गई
या ज़िंदगी के बहर में मौज-ए-ख़याल हूँ
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इक बहाना है तुझे याद किए जाने का
फूल होंटों को ग़ज़ल-ख़्वाँ देखना
फिर से बिखरी है तिरी ज़ुल्फ़ मिरे शानों पर
जो भी तेरी आँख को भा जाएगा
शिद्दत-ए-इज़हार-ए-मज़मूँ से है घबराई हुई
वक़्त के मक़्तल में हम हैं दोस्तो