ताइर-ए-ख़ुश-रंग को बे-बाल-ओ-पर देखेगा कौन
ताइर-ए-ख़ुश-रंग को बे-बाल-ओ-पर देखेगा कौन
उस को ख़ुद अपने लहू में तर-ब-तर देखेगा कौन
आज तो हर शख़्स है साए से तेरे शाद-काम
ख़ुश्क होने पर तुझे कल ऐ शजर देखेगा कौन
ये तो सच है कुछ जज़ीरे हैं उधर बेहद हसीं
उन को लेकिन बहर-ए-ख़ूँ में पैर कर देखेगा कौन
तोड़ कर आख़िर हवस का ये तिलिस्म-ए-ज़र-निगार
अहद-ए-नौ का इज़्दहा-ए-हफ़्त-सर देखेगा कौन
ऐ फ़सील-ए-शहर-ए-जानाँ इक ज़रा तू ही बता
मैं यहाँ पर जान तो दे दूँ मगर देखेगा कौन
हो गई बीनाई तो सब उस की दीवारों में जज़्ब
उन के घर को देख कर अब अपना घर देखेगा कौन
कुछ तमाशाई भी लाज़िम हैं सर-ए-मक़्तल 'तुफ़ैल'
वो नहीं होंगे तो क़ातिल का हुनर देखेगा कौन
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