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वो तो मिल कर भी नहीं मिलती है - त्रिपुरारि कविता - Darsaal

वो तो मिल कर भी नहीं मिलती है

वो तो मिल कर भी नहीं मिलती है

जाने किस धुन में रहा करती है

चूम लेती है मिरा माथा जब

एक ख़ुशबू सी बरस पड़ती है

सोच लेता हूँ उसे दम भर को

और ये रूह महक उठती है

मैं जिसे कह न सकूँगा हरगिज़

आज वो बात मुझे कहनी है

लोग कहते हैं मोहब्बत जिस को

सर-फिरी बिगड़ी हुई लड़की है

अपनी दुनिया के मसाइल में वो

अपनी ज़ुल्फ़ों की तरह उलझी है

मैं नदी नींद की और वो मुझ में

ख़्वाब मछली की तरह रहती है

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In Hindi By Famous Poet Tripurari. is written by Tripurari. Complete Poem in Hindi by Tripurari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.