ज़ुल्फ़ Poetry (page 29)
तुम नहीं आए थे जब
अली सरदार जाफ़री
ताशक़ंद की शाम
अली सरदार जाफ़री
सर-ए-तूर
अली सरदार जाफ़री
वतन से दूर यारान-ए-वतन की याद आती है
अली सरदार जाफ़री
तख़्लीक़ पे फ़ितरत की गुज़रता है गुमाँ और
अली सरदार जाफ़री
शिकस्त-ए-शौक़ को तकमील-ए-आरज़ू कहिए
अली सरदार जाफ़री
शबों की ज़ुल्फ़ की रू-ए-सहर की ख़ैर मनाओ
अली सरदार जाफ़री
अक़ीदे बुझ रहे हैं शम-ए-जाँ गुल होती जाती है
अली सरदार जाफ़री
अक़ीदे बुझ रहे हैं शम-ए-जाँ ग़ुल होती जाती है
अली सरदार जाफ़री
मिरे हाथ सुलझा ही लेंगे किसी दिन
अली जव्वाद ज़ैदी
जवानी हरीफ़-ए-सितम है तो क्या ग़म
अली जव्वाद ज़ैदी
नॉस्टेलजिया
अली इमरान
वो कि हर अहद-ए-मोहब्बत से मुकरता जाए
आलमताब तिश्ना
मिलेगा ज़ुल्फ़-ए-आज़ादी उन्हें क्या मौसम-ए-गुल में
आलम मुज़फ्फ़र नगरी
जहाँ 'रेहाना' रहती थी
अख़्तर शीरानी
यक़ीन-ए-वादा नहीं ताब-ए-इंतिज़ार नहीं
अख़्तर शीरानी
उस मह-जबीं से आज मुलाक़ात हो गई
अख़्तर शीरानी
निकहत-ए-ज़ुल्फ़ से नींदों को बसा दे आ कर
अख़्तर शीरानी
न वो ख़िज़ाँ रही बाक़ी न वो बहार रही
अख़्तर शीरानी
अश्क-बारी न मिटी सीना-फ़िगारी न गई
अख़्तर शीरानी
आओ बे-पर्दा तुम्हें जल्वा-ए-पिन्हाँ की क़सम
अख़्तर शीरानी
जो फ़क़त शोख़ी-ए-तहरीर भी हो सकती है
अख़तर शाहजहाँपुरी
न मिज़ाज-ए-नाज़-ए-जल्वा कभी पा सकीं निगाहें
अख़्तर ओरेनवी
ज़िंदगी होगी मिरी ऐ ग़म-ए-दौराँ इक रोज़
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
मदरसा अलीगढ़
अकबर इलाहाबादी
ज़िद है उन्हें पूरा मिरा अरमाँ न करेंगे
अकबर इलाहाबादी
वो हवा न रही वो चमन न रहा वो गली न रही वो हसीं न रहे
अकबर इलाहाबादी
तिरी ज़ुल्फ़ों में दिल उलझा हुआ है
अकबर इलाहाबादी
ख़ुदा अलीगढ़ की मदरसे को तमाम अमराज़ से शिफ़ा दे
अकबर इलाहाबादी
जल्वा अयाँ है क़ुदरत-ए-परवरदिगार का
अकबर इलाहाबादी
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