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Collection: ज़ुल्फ़ Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 25 - Darsaal

ज़ुल्फ़ Poetry (page 25)

सर-ए-शोरीदा पा-ए-दश्त-ए-पैमा शाम-ए-हिज्राँ था

बयान मेरठी

बदलने रंग सिखलाए जहाँ को

बयान मेरठी

रात उस तुनुक-मिज़ाज से कुछ बात बढ़ गई

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

कोई मेयार-ए-मोहब्बत न रहा मेरे बा'द

बासित भोपाली

तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली

बशीर बद्र

असर ज़ुल्फ़ का बरमला हो गया

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

लब-ए-रंगीं से अगर तू गुहर-अफ़शाँ होता

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

गया शबाब न पैग़ाम-ए-वस्ल-ए-यार आया

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

देखी जो ज़ुल्फ़-ए-यार तबीअत सँभल गई

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

असर ज़ुल्फ़ का बरमला हो गया

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

ये रुख़-ए-यार नहीं ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ के तले

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

रखता है यूँ वो ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम दोश पर

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

जो तुम और सुब्ह और गुलनार-ए-ख़ंदाँ हो के मिल बैठे

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

ग़ैरत-ए-गुल है तू और चाक-गरेबाँ हम हैं

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

छुप के नज़रों से इन आँखों की फ़रामोश की राह

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

रहता है ज़ुल्फ़-ए-यार मिरे मन से मन लगा

बाक़र आगाह वेलोरी

कुफ़्र एक रंग-ए-क़ुदरत-ए-बे-इंतिहा में है

बहराम जी

किया है संदलीं-रंगों ने दर बंद

बहराम जी

जो है याँ अासाइश-ए-रंज-ओ-मेहन में मस्त है

बहराम जी

इधर ख़याल मिरे दिल में ज़ुल्फ़ का गुज़रा

ज़फ़र

शाने की हर ज़बाँ से सुने कोई लाफ़-ए-ज़ुल्फ़

ज़फ़र

सब रंग में उस गुल की मिरे शान है मौजूद

ज़फ़र

पान की सुर्ख़ी नहीं लब पर बुत-ए-ख़ूँ-ख़्वार के

ज़फ़र

नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा

ज़फ़र

न दो दुश्नाम हम को इतनी बद-ख़़ूई से क्या हासिल

ज़फ़र

क्या कहूँ दिल माइल-ए-ज़ुल्फ़-ए-दोता क्यूँकर हुआ

ज़फ़र

काफ़िर तुझे अल्लाह ने सूरत तो परी दी

ज़फ़र

जब कि पहलू में हमारे बुत-ए-ख़ुद-काम न हो

ज़फ़र

है दिल को जो याद आई फ़लक-ए-पीर किसी की

ज़फ़र

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