ज़ुल्फ़ Poetry (page 21)
मिरे मुद्दआ-ए-उल्फ़त का पयाम बन के आई
ग़ुबार भट्टी
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
ग़ालिब
तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं
ग़ालिब
तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है
ग़ालिब
सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर
ग़ालिब
ओहदे से मद्ह-ए-नाज़ के बाहर न आ सका
ग़ालिब
मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर
ग़ालिब
जिस जा नसीम शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार है
ग़ालिब
हुज़ूर-ए-शाह में अहल-ए-सुख़न की आज़माइश है
ग़ालिब
हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था
ग़ालिब
ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़-यक-नफ़स
ग़ालिब
गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग
ग़ालिब
दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या
ग़ालिब
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
ग़ालिब
चाक की ख़्वाहिश अगर वहशत ब-उर्यानी करे
ग़ालिब
बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है
ग़ालिब
आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त
ग़ालिब
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
ग़ालिब
वो टुकड़ा रात का बिखरा हुआ सा
गौतम राजऋषि
समन-बरों से चमन दौलत-ए-नुमू माँगे
गौहर होशियारपुरी
मता-ए-इश्क़ ज़रा और सर्फ़-ए-नाज़ तो हो
गौहर होशियारपुरी
साँसों की जल-तरंग पर नग़्मा-ए-इश्क़ गाए जा
गणेश बिहारी तर्ज़
सर किया ज़ुल्फ़ की शब को तो सहर तक पहुँचे
ग़फ़्फ़ार बाबर
शाम-ए-अयादत
फ़िराक़ गोरखपुरी
वक़्त-ए-ग़ुरूब आज करामात हो गई
फ़िराक़ गोरखपुरी
तेज़ एहसास-ए-ख़ुदी दरकार है
फ़िराक़ गोरखपुरी
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो
फ़िराक़ गोरखपुरी
जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है
फ़िराक़ गोरखपुरी
इश्क़ की मायूसियों में सोज़-ए-पिन्हाँ कुछ नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
अपने ग़म का मुझे कहाँ ग़म है
फ़िराक़ गोरखपुरी
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