ज़ुल्फ़ Poetry (page 13)
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया
साग़र सिद्दीक़ी
टेम्परेरी जॉब
साग़र ख़य्यामी
सारी जफ़ाएँ सारे करम याद आ गए
साग़र ख़य्यामी
रहेगा प्यासों से पानी का फ़ासला कब तक
साग़र ख़य्यामी
बैठे हैं ऐसे ज़ुल्फ़ में कलियाँ सँवार के
साग़र ख़य्यामी
बहार आई है फिर पैरहन गुलाबी हो
सफ़दर मीर
ये हादसा भी तो कुछ कम न था सबा के लिए
सईद अहमद अख़्तर
तिरी गाली मुझ दिल को प्यारी लगे
सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़
पेच भाया मुझ को तुझ दस्तार का
सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़
चौधवाँ उस चंदर का साल हुआ
सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़
हर शख़्स को ऐसे देखता हूँ
सादिक़ नसीम
फ़नकार
साबिर दत्त
फूल बिखराती हर इक मौज-ए-हवा आती है
साबिर दत्त
अब उठाओ नक़ाब आँखों से
साबिर दत्त
'बद्र' यूँ तो सभी से मिलता है
साबिर बद्र जाफ़री
ये सीधे जो अब ज़ुल्फ़ों वाले हुए हैं
रियाज़ ख़ैराबादी
ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की
रियाज़ ख़ैराबादी
ये कोई बात है सुनता न बाग़बाँ मेरी
रियाज़ ख़ैराबादी
ये बला मेरे सर चढ़ी ही नहीं
रियाज़ ख़ैराबादी
वो हों मुट्ठी में उन की दिल हो हम हों
रियाज़ ख़ैराबादी
वा'दा था जिस का हश्र में वो बात भी तो हो
रियाज़ ख़ैराबादी
थी ज़र्फ़-ए-वज़ू में कोई शय पी गए क्या आप
रियाज़ ख़ैराबादी
तेज़ है पीने में हो जाएगी आसानी मुझे
रियाज़ ख़ैराबादी
रूठे हुए कि अपने ज़रा अब मनाए ज़ुल्फ़
रियाज़ ख़ैराबादी
मुझ को न दिल पसंद न दिल की ये ख़ू पसंद
रियाज़ ख़ैराबादी
ले गया घर से उन्हें ग़ैर के घर का ता'वीज़
रियाज़ ख़ैराबादी
ख़्वाब में भी नज़र आ जाए जो घर की सूरत
रियाज़ ख़ैराबादी
दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
रियाज़ ख़ैराबादी
दर खुला सुब्ह को पौ फटते ही मय-ख़ाने का
रियाज़ ख़ैराबादी
बात दिल की ज़बान पर आई
रियाज़ ख़ैराबादी
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