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Collection: ज़ुल्फ़ Hindi Poetry | Best Hindi Shayari & Poems - Page 12 - Darsaal

ज़ुल्फ़ Poetry (page 12)

ऐ आह तिरी क़द्र असर ने तो न जानी

मोहम्मद रफ़ी सौदा

शहर-ए-दिल सुलगा तो आहों का धुआँ छाने लगा

सत्य नन्द जावा

इक अजब कैफ़ियत-ए-होश-रुबा तारी थी

सरवर अरमान

किस से दूँ तश्बीह मैं ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल को तिरी

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

गरेबाँ हम ने दिखलाया उन्हों ने ज़ुल्फ़ दिखलाई

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

उन बुतों से रब्त तोड़ा चाहिए

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

रह कर मकान में मिरे मेहमान जाइए

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

ब-जुज़ साया तन-ए-लाग़र को मेरे कोई क्या समझे

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

इबरत-ए-दहर हो गया जब से छुपा मज़ार में

साक़िब लखनवी

ग़ैर के दिल में न जा कीजिएगा

सनाउल्लाह फ़िराक़

हँस दे तो खिले कलियाँ गुलशन में बहार आए

सलीम रज़ा रीवा

वो मिरे दिल की रौशनी वो मिरे दाग़ ले गई

सलीम अहमद

तरब-आफ़रीं है कितना सर-ए-शाम ये नज़ारा

सलाम संदेलवी

हर एक ज़र्रा बार-ए-अमानत से डर गया

सलाहुद्दीन नय्यर

यूँ परेशाँ कभी हम भी तो न थे

सख़ी लख़नवी

क़ासिद तिरे बार बार आए

सख़ी लख़नवी

चश्म-ए-मय-गूँ वहाँ शराब लज़ीज़

सख़ी लख़नवी

तेरे शैदा भी हुए इश्क़-ए-तमाशा भी हुए

सज्जाद बाक़र रिज़वी

दिल है तो मुक़ामात-ए-फुग़ाँ और भी होंगे

सज्जाद बाक़र रिज़वी

रुख़ पे यूँ झूम कर वो लट जाए

सैफ़ुद्दीन सैफ़

बड़े ख़तरे में है हुस्न-ए-गुलिस्ताँ हम न कहते थे

सैफ़ुद्दीन सैफ़

प्यार का तोहफ़ा

साहिर लुधियानवी

ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा

साहिर लुधियानवी

कुल जहाँ इक आईना है हुस्न की तहरीर का

सहबा अख़्तर

फ़र्द-ए-इसयाँ को वो सियाही दे

सहबा अख़्तर

हाथ आ सका है सिलसिला-ए-जिस्म-ओ-जाँ कहाँ

सहर अंसारी

छलके हुए थे जाम परेशाँ थी ज़ुल्फ़-ए-यार

साग़र सिद्दीक़ी

तारों से मेरा जाम भरो मैं नशे में हूँ

साग़र सिद्दीक़ी

साक़ी की इक निगाह के अफ़्साने बन गए

साग़र सिद्दीक़ी

नज़र नज़र बे-क़रार सी है नफ़स नफ़स में शरार सा है

साग़र सिद्दीक़ी

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