ज़ुल्फ़ Poetry (page 11)
ये इश्क़ भी अजीब है इक आन हो गया
शफ़क़ सुपुरी
वो नहा कर ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ को जो बिखराने लगे
शाद लखनवी
लब-ब-लब बिंत-उल-अनब हर-दम रहे
शाद लखनवी
इश्क़-ए-रुख़-ओ-ज़ुल्फ़ में किया कूच
शाद लखनवी
हम ने बाँधे हैं उस पे क्या क्या जोड़
शाद लखनवी
बोसा ज़ुल्फ़-ए-दोता का दो
शाद लखनवी
बोसा ज़ुल्फ़-ए-दोता का दो
शाद लखनवी
अक़्लीम-ए-दिल पे इश्क़ की फ़रमाँ-रवाइयाँ
शाद बिलगवी
क्यूँ हो बहाना-जू न क़ज़ा सर से पाँव तक
शाद अज़ीमाबादी
क्या फ़क़त तालिब-ए-दीदार था मूसा तेरा
शाद अज़ीमाबादी
काबा ओ दैर में जल्वा नहीं यकसाँ उन का
शाद अज़ीमाबादी
अब उन्हें मुझ से कुछ हिजाब नहीं
शबनम रूमानी
नींद से आँख वो मिल कर जागे
शायर लखनवी
ख़्वाब से आँख वो मल कर जागे
शायर लखनवी
जेहल को इल्म का मेआ'र समझ लेते हैं
शायर लखनवी
अहद-ए-मायूसी जहाँ तक साज़गार आता गया
शाद आरफ़ी
निकहत जो तिरी ज़ुल्फ़-ए-मोअ'म्बर से उड़ी है
सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर
इश्क़ है दरिया-ए-आतिश तैर कर जाने का नाम
सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर
न जिया तेरी चश्म का मारा
मोहम्मद रफ़ी सौदा
यूँ देख मिरे दीदा-ए-पुर-आब की गर्दिश
मोहम्मद रफ़ी सौदा
तुझ इश्क़ के मरीज़ की तदबीर शर्त है
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ने ग़रज़ कुफ़्र से रखते हैं न इस्लाम से काम
मोहम्मद रफ़ी सौदा
कीजिए न असीरी में अगर ज़ब्त नफ़स को
मोहम्मद रफ़ी सौदा
जो गुल है याँ सो उस गुल-ए-रुख़्सार साथ है
मोहम्मद रफ़ी सौदा
हस्ती को तिरी बस है मियाँ गुल की इशारत
मोहम्मद रफ़ी सौदा
गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
मोहम्मद रफ़ी सौदा
गदा दस्त-ए-अहल-ए-करम देखते हैं
मोहम्मद रफ़ी सौदा
एक हम से तुझे नहीं इख़्लास
मोहम्मद रफ़ी सौदा
दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा
मोहम्मद रफ़ी सौदा
बुलबुल ने जिसे जा के गुलिस्तान में देखा
मोहम्मद रफ़ी सौदा
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