अधिक Poetry (page 11)
अपने अंजाम से डरता हूँ मैं
गोपाल मित्तल
सोए हुए जज़्बों को जगाना ही नहीं था
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़
ग़ुलाम मौला क़लक़
बे-गाना-अदाई है सितम जौर-ओ-सितम में
ग़ुलाम मौला क़लक़
उस के होने से हुई है अपने होने की ख़बर
ग़ुलाम हुसैन साजिद
नशात-ए-फ़त्ह से तो दामन-ए-दिल भर नहीं पाए
ग़ुलाम हुसैन साजिद
आइने में अक्स खिलता है गुल-ए-हैरत नहीं
ग़ुलाम हुसैन साजिद
ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद
ग़ालिब
हुई जिन से तवक़्क़ो ख़स्तगी की दाद पाने की
ग़ालिब
ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद
ग़ालिब
तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो
ग़ालिब
सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर
ग़ालिब
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
ग़ालिब
बे-ए'तिदालियों से सुबुक सब में हम हुए
ग़ालिब
मौत
गीताञ्जलि राय
मरहला तय कोई बे-मिन्नत-ए-जादा भी तो हो
गौहर होशियारपुरी
क़ुर्ब ही कम है न दूरी ही ज़ियादा लेकिन
फ़िराक़ गोरखपुरी
आधी रात
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था
फ़िराक़ गोरखपुरी
आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था
फ़िराक़ गोरखपुरी
कोई आँख चुपके चुपके मुझे यूँ निहारती है
फ़े सीन एजाज़
मैं बोली तेरे लब पर है हँसी मेरी
फ़ौज़िया रबाब
ये वो सफ़र है जहाँ ख़ूँ-बहा ज़रूरी है
फ़सीह अकमल
हम वफ़ादार हैं और इस से ज़ियादा क्या हों
फ़रताश सय्यद
मातम-ए-नीम-ए-शब
फ़ारूक़ नाज़की
नश्शे में जो है कोहना शराबों से ज़ियादा
फ़ारिग़ बुख़ारी
अपने ही साए में था में शायद छुपा हुआ
फ़ारिग़ बुख़ारी
रातों के अंधेरों में ये लोग अजब निकले
फ़रहत क़ादरी
लहर का ठहराओ
फ़रहत एहसास
पुराना ज़ख़्म जिसे तजरबा ज़ियादा है
फ़रहत एहसास
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