समय Poetry (page 36)
बर्क़-ए-कलीसा
अकबर इलाहाबादी
कहाँ वो अब लुत्फ़-ए-बाहमी है मोहब्बतों में बहुत कमी है
अकबर इलाहाबादी
दिखा दूँगा तमाशा दी अगर फ़ुर्सत ज़माने ने
अजमल सिराज
जो कल हैरान थे उन को परेशाँ कर के छोड़ूँगा
अजमल सिराज
वक़्त-ए-सफ़र क़रीब है बिस्तर समेट लूँ
अजमल अजमली
क्यूँ कहूँ कोई क़द-आवर नहीं आया अब तक
आजिज़ मातवी
जब मेरा घर बहिश्त सी गुल-वादियों में था
अजीत सिंह हसरत
शाम आई है लिए हाथ में यादों के चराग़
अजय सहाब
मुख़्तलिफ़ अपनी कहानी है ज़माने भर से
ऐतबार साजिद
छोटे छोटे से मफ़ादात लिए फिरते हैं
ऐतबार साजिद
मैं हँस रहा था गरचे मिरे दिल में दर्द था
ऐश बर्नी
पुरानी फ़ाइलों में गुनगुनाती शाम
ऐन ताबिश
कैसे अफ़्सूँ थे वहाँ कैसे फ़साने थे उधर
ऐन ताबिश
जी रहे हैं आफ़ियत में तो हुनर ख़्वाबों का है
ऐन ताबिश
इश्क़ करते हैं तो अहल-ए-इश्क़ यूँ सौदा करें
अहसन मारहरवी
चाहिए इश्क़ में इस तरह फ़ना हो जाना
अहसन मारहरवी
जो जो शुऊर-ए-ज़ेहन पे आता चला गया
अहसन लखनवी
मुझ को ख़ुशियाँ न सही ग़म की कहानी दे दे
अहसन इमाम अहसन
जो अर्ज़ां है तो है उन की मता-ए-आबरू वर्ना
अहमक़ फफूँदवी
इल्म की ज़रूरत
अहमक़ फफूँदवी
नई हद-बंदियाँ होने को हैं आईन-ए-गुलशन में
अहमक़ फफूँदवी
यूँ ज़माने में मिरा जिस्म बिखर जाएगा
अहमद ज़फ़र
सियाह रात की हर दिलकशी को भूल गए
अहमद ज़फ़र
फ़लक पे चाँद नहीं कोई अब्र-पारा नहीं
अहमद ज़फ़र
जुनूँ की रस्म ज़माने में आम हो न सकी
अहमद शाहिद ख़ाँ
दुनिया सभी बातिल की तलबगार लगे है
अहमद शाहिद ख़ाँ
बुझती हुई आँखों का अकेला वो दिया था
अहमद सज्जाद बाबर
क्या क्या मोहब्बतों के ज़माने बदल गए
अहमद रियाज़
क्या क्या मोहब्बतों के ज़माने बदल गए
अहमद रियाज़
मैं सोचता हूँ ज़माने का हाल क्या होगा
अहमद राही
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