समय Poetry (page 27)
बज़्म-ए-जानाँ में मोहब्बत का असर देखेंगे
चरख़ चिन्योटी
बज़्म-ए-जानाँ में मोहब्बत का असर देखेंगे
चरख़ चिन्योटी
सर उठा के मत चलिए आज के ज़माने में
चरण सिंह बशर
वो क्या जवाब दे अर्ज़-ए-सवाल से पहले
चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी
पहले तो उस की ज़ात ग़ज़ल में समेट लूँ
चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी
इस को ना-क़दरी-ए-आलम का सिला कहते हैं
चकबस्त ब्रिज नारायण
रामायण का एक सीन
चकबस्त ब्रिज नारायण
सहर हुई तो ख़यालों ने मुझ को घेर लिया
बिस्मिल साबरी
ख़िज़ाँ के जाने से हो या बहार आने से
बिस्मिल अज़ीमाबादी
अब रहा क्या है जो अब आए हैं आने वाले
बिस्मिल अज़ीमाबादी
न रहे तुम जो हमारे तो सहारा न रहा
बिस्मिल इलाहाबादी
जीने वाला ये समझता नहीं सौदाई है
बिस्मिल इलाहाबादी
मुसाफ़िरों का यहाँ से गुज़र नहीं है क्या
बिल्क़ीस ख़ान
नास्टैल्जिया
बिलाल अहमद
माशूक़ हमें बात का पूरा नहीं मिलता
बेख़ुद देहलवी
लुत्फ़ से मतलब न कुछ मेरे सताने से ग़रज़
बेख़ुद देहलवी
लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें
बेख़ुद देहलवी
कब तक करेंगे जब्र दिल-ए-ना-सुबूर पर
बेख़ुद देहलवी
आशिक़ हैं मगर इश्क़ नुमायाँ नहीं रखते
बेख़ुद देहलवी
आप हैं बे-गुनाह क्या कहना
बेख़ुद देहलवी
यूँही रहा जो बुतों पर निसार दिल मेरा
बेखुद बदायुनी
नए ज़माने में अब ये कमाल होने लगा
बेकल उत्साही
ख़ुशी महसूस करता हूँ न ग़म महसूस करता हूँ
बहज़ाद लखनवी
ख़ंजर तलाश करता है
बेबाक भोजपुरी
अहसन तक़्वीम
बेबाक भोजपुरी
ग़म-ए-आफ़ाक़ में आरिफ़ अगर करवट बदलता है
बेबाक भोजपुरी
ख़ूँ बहाने के हैं हज़ार तरीक़
बयान मेरठी
अपनी बातों के ज़माने तो हवा-बुर्द हुए
बासिर सुल्तान काज़मी
ख़त में क्या क्या लिखूँ याद आती है हर बात पे बात
बासिर सुल्तान काज़मी
न आने के उन के बहाने भी देखे
बशीर महताब
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